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Pratinidhi Kavitayen : Kumar Ambuj

Pratinidhi Kavitayen : Kumar Ambuj

by Kumar Ambuj

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Binding

Number Of Pages: 136

Binding: Paperback

1990 के बाद कुमार अम्बुज की कविता भाषा, शैली और विषय-वस्तु के स्तर पर इतना लंबा डग भरती है कि उसे ‘क्वांटम जम्प’ ही कहा जा सकता है। उनकी कविताओं में इस देश की राजनीति, समाज और उसके करोड़ों मजश्लूम नागरिकों के संकटग्रस्त अस्तित्व की अभिव्यक्ति है। वे सच्चे अर्थों में जनपक्ष, जनवाद और जन-प्रतिबद्धता की रचनाएँ हैं। जनधर्मिता की वेदी पर वे ब्रह्माण्ड और मानव-अस्तित्व के कई अप्रमेय आयामों और शंकाओं की संकीर्ण बलि भी नहीं देतीं। यह वह कविता है जिसका दृष्टि-संपन्न कला-शिल्प हर स्थावर-जंगम को कविता में बदल देने का सामथ्र्य रखता है। कुमार अम्बुज हिन्दी के उन विरले कवियों में से हैं जो स्वयं पर एक वस्तुनिष्ठ संयम और अपनी निर्मिति और अंतिम परिणाम पर एक जिश्म्मेदार गुणवत्ता-दृष्टि रखते हैं। उनकी रचनाओं में एक नैनो-सघनता, एक ठोसपन है। अभिव्यक्ति और भाषा को लेकर ऐसा आत्मानुशासन, जो दरअसल एक बहुआयामी नैतिकता और प्रतिबद्धता से उपजता है और आज सर्वव्याप्त हर तरह की नैतिक, बौद्धिक तथा सृजनपरक काहिली, कुपात्राता तथा दलिद्दर के विरुद्ध है, हिन्दी कविता में ही नहीं, अन्य सारी विधाओं में दष्ुप्राप्य होता जा रहा है। अम्बुज की उपस्थिति मात्रा एक उत्कृष्ट सृजनशीलता की नहीं, सख़्त पारसाई की भी है। µविष्णु खरे (भूमिका से)
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