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Pratinidhi Kavitayen : Vinod Kumar Shukla
Pratinidhi Kavitayen : Vinod Kumar Shukla
by Vinod Kumar Shukla
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Number Of Pages: 144
Binding: Paperback
विनोद कुमार शुक्ल समकालीन कविता के संसार में आज ऐसे कवी के रूप में बहुप्रतिष्ठित हैं जिनकी कविता को बिना उनके नाम के भी जागरूक पाठक पहचान लेते हैं । उनकी कविता, कविता के तुमुल कोलाहल के बीच चुपचाप अपने सृजन में व्यस्त दिखती है । किसी भी तरह के दिखावे, छलावे, भुलावे से दूर अपनी राह का खुद निर्माण करती और उस पर निर्भय अकेले चलने की हिम्मत रखती, वह अपनी मंजिलें तय करने में सलग्न है । विनोद की काव्य-संवेदना के विस्तार को देखने के लिए उनकी कविताओं की गहराई में उतरना होगा । उनकी काव्यात्मक जटिलता इसीलिए ऊपर से दिखाई पड़ती है क्योंकि उनकी काव्य संवेदना की तहें इकहरी न होकर दुहरी और कहीं तिहरी हैं । देखा जाए तो उनकी काव्योपलब्धि में सिर्फ अनोखे काव्य-शिल्प का ही योगदान नहीं है बल्कि उनकी काव्य-वस्तु में यथार्थ को ‘देखने’ का नजरिया भी उनके अपने समकालीनों से अलहदा रहा हैं । कहना चाहिए कि विनोद कुमार शुक्ल की कविता समकालीन कविता के दृश्य पर समकालीन जीवनानुभव को प्राचीनता से, प्रकृति से मनुष्य को जिस तरह उद्घाटित करती है उससे कविता की एक दूसरी दुनिया की खिड़की खुलती है । इस दुनिया को देखने के लिए विनोद कुमार शुक्ल जैसी ‘अतिरिक्त’ देखने की दृष्टि और कला चाहिए ।
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