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Professional Prabandhan

Professional Prabandhan

by Vijay Shankar Mehta

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Author: Vijay Shankar Mehta

Languages: Hindi

Number Of Pages: 256

Binding: Paperback

Package Dimensions: 7.7 x 5.0 x 0.8 inches

Release Date: 03-05-2016

Details: जीवन में सुख शांति के लिए धन ज़रूरी है लेकिन यदि धन का आध्यात्मिक पक्ष नहीं समझा गया, तो यह सुख से अधिक दुःख का कारण बन जाता है I जब जीवन में बाहर से धन आ रहा हो तो समय रहते हम भीतर के शान की पहचान कर लें I पं. विजयशंकर मेहता

अमीरी और दौलत अपने साथ प्रदर्शन व दिखावे की आदत लेकर आती है I यहीं से जीवन में आलस्य और अपव्यय का भी आरंभ हो जाता है I दुर्व्यसन दूर खड़े होकर प्रतीक्षा कर रहे होते हैं कि कब आदमी आलस्य, अपव्यय के गहने पहने और हम प्रवेश कर जाएं I जब हम धन के बाहरी इंतज़ाम जुटा रहे हों, उसी समय मन की भीतरी व्यवस्थाओं के प्रति सजग हों जाएं I

मन की चार अवस्थाएं मणि गयी हैं : स्वप्न, सुषुप्ति जागृत और तुरीय I तुरीय अवस्था यानी हमारे भीतर किसी साक्षी का उपस्थित होना I बहुत गहरे में हम पाते हैं कि चाहे हम सो रहे हों या जागते हुए कोई काम कर रहे हों, हमारे भीतर कोई होता है जो इन स्तिथियों से अलग होकर हमें देख रहा होता है I थोड़े होश और अभ्यास से देखें तो हमें पता लग जाता है कि यह साक्षी हम हे हैं I इसे हे हम हमारा 'होना' कहते हैं I

धन के मामले में हम जितने तुरीय अवस्था के निकट जा पाएंगे, उतने ही प्रदर्शन, अपव्यय व आलस्य जैसे दुर्गुणों से दूर रह पाएंगे I यह धन का निजी प्रबंधन है तथा तब दौलत आपको सुख से साथ शांति भी देगी I

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