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Raqs Jaari Hai
Raqs Jaari Hai
by Abbas Tabish
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Number Of Pages: 135
Binding: Paperback
अब्बास ताबिश की गज़लों में एक साधा हुआ रूमान है, जिसकी हदें इंसानी रूह और इंसानों की दूर-दूर तक फैली हुई दुनिया के तमामतर मसलों पर निगाह डालती हैं। वे पाकिस्तान से हैं और उर्दू शायरी की उस रवायत में हैं जिससे पाकिस्तान के साथ-साथ हिन्दुस्तान के लोग भी बखूबी परिचित हैं, और जिसके दीवाने दोनों मुल्कों में बराबर पाए जाते हैं। अहसास के उनके यहाँ कई रंग हैं, यानी ये नहीं कहा जा सकता कि वे सिर्फ इश्क के शायर हैं, या सिर्फ, फलसफे की गुत्थियों को ही अपने अशआर में खोलते हैं, या सिर्फ दुनियावी समझ और जि़न्दगी को ही अपना विषय बनाते हैं। उनके यहाँ यह सब भी है मसलन यह शेर, ‘हम हैं सूखे हुए तालाब पे बैठे हुए हंस, जो तआल्लुक को निभाते हुए मर जाते हैं।’ इस शे’र में निहाँ विराग और लगाव हैरान कर देनेवाला है, उसको कहने का अन्दाज़ तो लाजवाब है ही। अपनी बात को कहने के लिए वे अपने अहसास को एक तस्वीर की शक्ल में हम तक पहुँचाते हैं जो पढऩे-सुनने वाले के ज़ेहन में नक्श हो जाता है। ‘मैं कैसे अपने तवाज़ुन को बरकरार रक्खूँ, कदम जमाऊँ तो साँसें उखडऩे लगती हैं’। इस शे’र में क्या एक भरा-पूरा आदमी अपने वजूद की चुनौतियों को सँभालने की जद्दोजहद में हलकान हमारे सामने साकार नहीं हो जाता? अब्बास ताबिश की विशेषताओं में यह चित्रात्मकता सबसे ज़्यादा ध्यान आकॢषत करती है। मिसाल के लिए एक और शे’र, ‘ये जो मैं भागता हूँ वक्त से आगे-आगे, मेरी वहशत के मुताबिक ये रवानी कम है’। अब्बास ताबिश की चुनिन्दा गज़लों का यह संग्रह उनकी अब तक प्रकाशित सभी किताबों की नुमायंदगी करता है। उम्मीद है हिन्दी के शायरी-प्रेमी पाठक इस किताब से उर्दू गज़ल के एक और ताकतवर पहलू से परिचित होंगे।
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