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RTI Kaise Aayee

RTI Kaise Aayee

by Aruna Roy

Regular price Rs 349.00
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Binding

Language: Hindi

Number Of Pages: 350

Binding: Paperback

‘‘ब्यावर की गलियों से उठकर राज्य की विधानसभा से होते हुए संसद के सदनों और उसके पार विकसित होते एक जन आन्दोलन को मैंने बड़े उत्साह के साथ देखा है। यह पुस्तक, अपनी कहानी की तर्ज पर ही जनता के द्वारा और जनता के लिए है। मैं खुद को इस ताकतवर आन्दोलन के एक सदस्य के रूप में देखता हूँ।’’ कुलदीप नैयर, मूर्धन्य पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता ‘‘यह कहानी हाथी के खिलाफ चींटियों की जंग की है। एमकेएसएस ने चींटियों को संगठित कर के राज्य को जानने का अधिकार कानून बनाने के लिए बाध्य कर डाला। गोपनीयता के नाम पर हाशिये के लोगों को हमेशा अपारदर्शी व सत्ता-केन्द्रित राज्य का शिकार बनाया गया लेकिन वह जमीन की ताकत ही थी जिसने संसद को यह कानून गठित करने को प्रेरित किया जैसा कि हमारे संविधान की प्रस्तावना में निहित है, यह राज्य ‘वी द पीपल’ (जनता) के प्रति जवाबदेह है। पारदर्शिता, समता और प्रतिष्ठा की लड़ाई आज भी जारी है...।’’ बेजवाड़ा विल्सन ‘सफाई कर्मचारी आन्दोलन’ के सह-संस्थापक, मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित ‘‘यह एक ऐसे कानून के जन्म और विकास का ब्योरा है जिसने इस राष्ट्र की विविधताओं और विरोधाभासों को साथ लेते हुए भारत की जनता के मानस पर ऐसी छाप छोड़ी है जैसा भारत का संविधान बनने से लेकर अब तक कोई कानून नहीं कर सका। इसे मुमकिन बनानेवाली माँगों और विचारों के केन्द्र में जो भी लोग रहे, उन्होंने इस परिघटना को याद करते हुए यहाँ दर्ज किया है...यह भारत के संविधान के विकास के अध्येताओं के लिए ही जरूरी पाठ नहीं है बल्कि उन सभी महत्त्वाकांक्षी लोगों के लिए अहम है जो इस संकटग्रस्त दुनिया के नागरिकों के लिए लोकतंत्र के सपने को वास्तव में साकार करना चाहते हैं।’’ वजाहत हबीबुल्ला पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त, केन्द्रीय सूचना आयोग ‘‘देश-भर के मजदूरों और किसानों के लिए न्याय व समता के प्रसार में बीते वर्षों के दौरान एमकेएसएस का काम बहुमूल्य रहा है। इस किताब को पढऩा एक शानदार अनुभव से गुजरना है। यह आरम्भिक दिनों से लेकर अब तक कानून के विकास की एक कहानी है। इस कथा में सक्रिय प्रतिभागी जो तात्कालिक अनुभव लेकर सामने आते हैं, वह आख्यान को बेहद प्रासंगिक और प्रभावी बनाता है।’’ श्याम बेनेगल प्रतिष्ठित फिल्मकार और सामाजिक रूप से प्रतिबद्ध नागरिक ‘‘हाल के वर्षों में आरटीआइ सर्वाधिक अहम कानूनों में एक रहा है। इसे यदि कायदे से लागू किया जाए तो इसका इस्तेमाल शहरी और ग्रामीण गरीबों को उनकी जिन्दगी के बुनियादी हक दिलवाने और कुछ हद तक सामाजिक न्याय सुनिश्चित कराने में किया जा सकता है।’’ रोमिला थापर, सुप्रसिद्ध इतिहासकार
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