रघुवीर सहाय अप्रतिम कवि थे । विचार कि ठोस और स्पष्ट जमीन पर पैर रखे हुए उन्होंने अपने कवि को एक बड़ा आकाश दिया । जिसे आने वाले समय में एक शैली बन जाना था । यह नवोन्मेष उनकी कहानियों में भी था, इससे कम लोग परिचित हैं । इस संकलन में उपस्थित उनकी समग्र कथा-सम्पदा के पाठ से हम जान सकते हैं कि कविता में जिस वृहत्तर सत्य को अंकित करने का प्रयास वे करते थे, वह किसी फॉर्म को साधने भर का उपक्रम न था, अपने अनुभव और उसकी सम्पूर्ण अभिव्यक्ति की व्याकुलता थी जो उन्हें अन्य विधाओं तक भी ले जाती थी । इस पुस्तक में संकलित उनके कथा-संग्रहों के साथ प्रकाशित डॉ भूमिकाए एक बड़े रचनाकार के बड़े सरोकारों का पता देती हैं, जिनमे एक चिंता लेखन के उददेश्य को लेकर भी है । वे कहते हैं कि मनुष्यों के परस्पर सम्बन्धों को बार-बार जानने और जांचने कि आवश्यकता ही लेखन कि सबसे जरूरी वजह है ।कुछ तत्व हमेशा काम करते रहते हैं जिनके राजनितिक उददेश्य समता और न्याय के विरुद्ध होते हैं, वे संगठित होकर लेखक द्वारा बताये सत्य को विकृत कर प्रचारित किया करते हैं । लेखक के लिए बार-बार अपने मत को बताना इस आक्रमण के विरुद्ध आवश्यक होता है । रघुवीर सहाय कि कवितायेँ अपनी काया का निरंतर अतिक्रमण करते हुए यही कार्य हमेशा करती रहीं, और ए कहानियाँ भी वही करती हैं ।
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