Sanasdeeya Pranali (hindi)
Sanasdeeya Pranali (hindi)
by Arun Shourie
Author: Arun Shourie
Languages: hindi
Number Of Pages: 304
Binding: Paperback
Package Dimensions: 8.4 x 5.4 x 0.9 inches
Release Date: 01-12-2016
Details: Product Description हमारे 99 फीसदी विधायक अल्पमत निर्वाचकों द्वारा चुने जाते हैं, उनमें से कई डाले गए वोटों का महज 15-20 फीसदी वोट पाकर निर्वाचित हो जाते हैं—यह आबादी का बमुश्किल 4-6 फीसदी बैठता है। तो हमारी संसदीय प्रणाली कितनी प्रतिनिधि प्रणाली है? लोकसभा में 39 पार्टियों के साथ, 14 पार्टियों से मिलकर बनी सरकार के साथ, क्या यह प्रणाली मजबूत, संशक्त और प्रभावी सरकारें प्रदान कर रही हैं, जिसकी हमारे देश को जरूरत है? क्या यह प्रणाली ऐसे व्यक्तियों के हाथों में सत्ता सौंप रही है, जिनके पास मंत्रालयों को चलाने की, विधायी प्रस्तावों का आकलन करने की, वैकल्पिक नीतियों का मूल्यांकन करने की क्षमता, समर्पण और निष्ठा है? या यह खराब-से-खराब लोगों को विधायिका और सरकार में ला रही है? जब वे सत्ता में होते हैं तो क्या यह उन्हें लोगों का भला करने के लिए प्रेरित करती है, या यह उन्हें कहती है कि कार्य-प्रदर्शन मायने नहीं रखता है, कि ‘गठबंधनों’ को बनाए रखना कार्य-प्रदर्शन का स्थानापन्न है? क्या यह प्रतिरोधी और बाधा खड़ी करनेवाली राजनीति को अपरिहार्य नहीं बनाती है? इससे पहले कि हम यह निष्कर्ष निकालें कि इस प्रणाली का समय पूरा हो गया है, शासन का कितना पूजन हो, ताकि हमें लगे कि हमें अवश्य ही विकल्प तैयार करना चाहिए? वह विकल्प क्या हो सकता है? तब क्या होता है, जब ये विधायक ‘संप्रभुता’ का दावा करते हैं और उसे अपना बना लेते हैं? न्यायपालिका ने जो बाँध खड़ा किया है—कि संविधान के आधारभूत ढाँचे को बदला नहीं जा सकता— राजनीतिक वर्ग के खिलाफ एक आवश्यक सुरक्षा नहीं है? लेकिन क्या कोई वैकल्पिक प्रणाली तैयार की जा सकती है, जो इस आवश्यक बाँध को तोड़ेगी नहीं, उसका उल्लंघन नहीं करेगी? उस विकल्प का मार्ग कौन प्रशस्त करेगा? उसकी अगुवाई कौन करेगा? इस झुलसानेवाली समालोचना में अरुण शौरी इन सवालों और अन्य मुद्दों को उठाते हैं। हमारे वक्त के लिए अनिवार्य। हमारे देश की दृढता के लिए आवश्यक| About the Author अरुण शौरी समसामयिक एवं राजनीतिक मामलों पर भारत के सबसे नामचीन टिप्पणीकारों में से एक हैं। इंटरनेशनल प्रेस इंस्टीट्यूट ने पिछली आधी सदी के ‘वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम हीरोज’ (विश्व प्रेस स्वतंत्रता नायकों) में से एक कहकर उनकी सराहना की है, जिनके कार्य ने स्वतंत्रता को बनाए रखा है। निजीकरण पर उनके अग्रणी कार्यों के लिए ‘बिजनेस वीक’ ने उनकी ‘स्टार ऑफ एशिया’ (एशिया का सितारा) कहकर और ‘द इकोनॉमिक टाइम्स’ ने ‘बिजनेस लीडर ऑफ दी ईयर’ (वर्ष का कारोबारी नेता) कहकर प्रशंसा की है। भारतीय मुख्य कार्यकारी अधिकारियों (सी.ई.ओ.) द्वारा उनकी अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के ‘सर्वाधिक उल्लेखनीय मंत्री’ कहकर प्रशंसा की गई है। मैगसेसे पुरस्कार, दादाभाई नौरोजी पुरस्कार, दी फ्रीडम टु पब्लिश अवॉर्ड (छापने की स्वतंत्रता पुरस्कार), वर्ष का अंतरराष्ट्रीय संपादक, एस्टर अवॉर्ड, पद्म भूषण और अन्य सम्मानों से उन्हें अलंकृत किया गया है। एन.डी.ए. सरकार में उन्होंने कई विभाग सँभाले, जिसमें विनिवेश, संचार और सूचना प्रौद्योगिकी विभाग भी शामिल थे। अनेक विचारप्रधान पुस्तकों के यशस्वी लेखक|
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