धूमिल सच्चे अर्थ में एक जनकवि हैं। उनकी ‘संसद से सड़क तक’ की कविताएँ इस बात की साक्षी हैं कि धूमिल का कवि संघनित अनुभूतियों का ही कवि नहीं है बल्कि अनुभूतियों से निकलकर विचारों की यात्रा करना भी उसे प्रिय है। ‘संसद से सड़क तक’ की कविताएँ भावात्मक सार पर तो पाठक को स्पर्श करती ही हैं बौद्धिक स्तर पर भी ये कविताएँ उन्हें उद्वेलित करती हैं। भारतीय राजनीति में लोकतन्त्र के चरित्र को धूमिल ने अपनी कविता ‘जनतन्त्र के सूर्योदय में’ जिस तरह उजागर किया है, वह चकित करता है। उनकी कविताओं में वर्तमान समय के ढेरों ज़रूरी किन्तु अनुत्तरित सवाल हैं। ‘पटकथा’, ‘मुनासिब कार्रवाई’, ‘उस औरत की बग़ल में लेटकर’ तो इस बात की गवाही भी देती हैं कि धूमिल को आत्म-साक्षात्कार प्रिय है। और ख़ुद से रू-ब-रू होना कितना कठिन होता है, यह हर विज्ञ व्यक्ति जानता है। ‘मोची राम’, ‘रामकमल चौधरी के लिए’, ‘अकाल’, ‘दर्शन’, ‘गाँव’, ‘प्रौढ़ शिक्षा’ सरीखी कविताएँ धूमिल के गहरे आत्मविश्वास की पहचान कराती हैं। एक ऐसे आत्मविश्वास की पहचान जो रचनात्मक उत्तेजना और समझ से प्रकट हुई है। कहना न होगा कि जर्जर सामाजिक संरचनाओं और अर्थहीन काव्यशास्त्र को आवेग, साहस, ईमानदारी और रचनात्मक आक्रोश से निरस्त कर देनेवाले रचनाकार के रूप में धूमिल अविस्मरणीय हैं।
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