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Suno Deepashalinee

Suno Deepashalinee

by Rabindranath Tagore

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Binding

Language: Hindi

Number Of Pages: 96

Binding: Hardcover

रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गीतों के वृहद् संकलन 'गीतवितान' से चुनकर इन गीतों का अनुवाद मूल बांग्ला से ही किया गया है | रवीन्द्रनाथ के गीतों में गजब की संक्षिप्ति और प्रवहमानता है, और शब्दों से उत्पन्न होने वाले संगीत की अनूठी उपलब्धि है | इस मामले में वे जयदेव और विद्यापति की परंपरा में ही आते हैं | इन अनुवादों में रवीन्द्रनाथ के गीतों के सुरों को, उनकी लयात्मक गति को उनके संगीत-तत्व को सुरक्षित रखने का भरपूर प्रयत्न प्रयाग शुक्ल ने किया है | अचरज नहीं कि इन गीतों को अनुवाद में पढ़ते हुए भी हम उनके प्राण-तत्व से जितना अनुप्राणित होते हैं, उतना ही उनके गान-तत्व से भी होते हैं | रवीन्द्रनाथ ने अपने गीतों को कुछ प्रमुख शीर्षकों में बाँटा है, यथा 'प्रेम', 'पूजा', 'प्रकृति', 'विचित्र', 'स्वदेश' आदि में, पर, हर गीत के शीर्षक नहीं दिए हैं | यहाँ हर गीत की परिस्थिति के लिए उसका एक शीर्षक दे दिया गया है | प्रस्तुत गीतों में प्रेम, पूजा और प्रकृति-सम्बन्धी गीत ही अधिक हैं | प्रेम ही उनके गीतों का प्राण-तत्व है | रवीन्द्रनाथ अपनी कविताओं और गीतों में भेद करते थे | उनका मानना था कि भले ही उनकी कविताएँ, नाटक, उपन्यास, कहानियाँ भुला दिए जाएँ, पर बंगाली समाज उनके गीतों को अवश्य गाएगा | वैसा ही हुआ भी है, और बंगाली समाज ही क्यों, उनके गीत दुनिया भर में गूँजे हैं | हिंदी में 'गीतांजलि' के अनुवादों को छोड़कर, उनके गीतों के अनुवाद कम ही उपलब्ध हैं | हमें भरोसा है कि इन चुने हुए गीतों का पाठक-समाज में स्वागत होगा |
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