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Tughlaq

Tughlaq

by Girish Karnad

Regular price Rs 182.00
Regular price Rs 199.00 Sale price Rs 182.00
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Binding

Number Of Pages: 159

Binding: Paperback

मोहम्मद तुग़लक चारित्रिक विरोधाभास में जीनेवाला एक ऐसा बादशाह था जिसे इतिहासकारों ने उसकी सनकों के लिए ख़ब्ती करार दिया। जिसने अपनी सनक के कारण राजधानी बदली और ताँबे के सिक्के का मूल्य चाँदी के सिक्के के बराबर कर दिया। लेकिन अपने चारों ओर कट्टर मज़हबी दीवारों से घिरा तुग़लक कुछ और भी था। उसने मज़हब से परे इंसान की तलाश की थी। हिंदू और मुसलमान दोनों उसकी नज़र में एक थे। तत्कालीन मानसिकता ने तुग़लक की इस मान्यता को अस्वीकार कर दिया और यही ‘अस्वीकार’ तुग़लक के सिर पर सनकों का भूत बनकर सवार हो गया। नाटक का कथानक मात्र तुग़लक के गुण-दोषों तक ही सीमित नहीं है। इसमें उस समय की परिस्थितियों और तज्जनित भावनाओं को भी अभिव्यक्त किया गया है, जिनके कारण उस समय के आदमी का चिंतन बौना हो गया था और मज़हब तथा सियासत के टकराव में हरेक केवल अपना उल्लू सीधा करना चाहता है। 3 अप्रैल, 1983, हिंदुस्तान, नयी दिल्ली

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