“केदार जी की कविताओं में व्यक्तिगत और सार्वजनीन, सूक्ष्म और स्थूल, शांत और हिंस्त्र के बीच आवाजाही, तनाव और द्वंदात्मकता लगातार देखी जा सकती है । ‘सूर्य’ कविता की पहली आठ या शायद नौ पंक्तियाँ कुहरे में धूप जैसा गुनगुना मूड तैयार करती ही हैं कि ‘खूंखार चमक, आदमी का खून, गंजा या मुस्तंड आदमी, सिर उठाने की यातना’ इस गीतात्मक मूड को जहाँ एक और नष्ट करते से लगते हैं वहां उसका कंट्रास्ट भी देते हैं । दुनिया की सबसे आश्चर्यजनक चीज रोटी ताप, गरिमा और गन्ध के साथ पक रही है । केदार जी चाहते तो इस मृदु चित्र को कुछ और पंक्तियों में ले जा सकते थे लेकिन शीघ्र ही रोटी एक झपट्टा मारनेवाली चीज में बदल जाती है और कवि आदिमानव के युग में पहुँच जाता है-वह कहता अवश्य है की पकना लौटना नहीं है जड़ों की ओर, किन्तु रोटी का पकना उसे आदिम जड़ों की ओर ही ले जाता है । उसकी गरमाहट उसे नींद में जगा रही है, आदमी के विचारों तक पहुँच रही है और वह समझ रहा है कि रोटी भूखे आदमी की नींद में नहीं गिरेगी बल्कि उसका शिकार करना होगा और यह समझना कविता लिखते हुए भी कविता लिखने की हिमाकत नहीं बल्कि आग की ओर इशारा करना है । केदार जी की कविताओं का अपनापन असंदिघ्ध है और वे कवि और कविताओं की भारी भीड़ में भी तुरंत पहचानी जा सकती हैं ।” --विष्णु खरे
-
Categories
- Aaj Urdu Magazine
- Anthology
- Biographies, Diaries & True Accounts
- Business, Economics and Investing
- Children's & Young Adult
- Classics
- Crafts, Home & Lifestyle
- Crime, Thriller & Mystery
- Culinary
- Deewan
- Epics
- Fantasy, Horror & Science Fiction
- Film, Theater & Drama
- Historical Fiction
- History
- Humorous
- Journalism
- Kulliyat
- Language, Linguistics & Writing
- Legends & Mythology
- Letters
- Nature, Wildlife & Environment
- Novel
- Poetry
- Politics
- Religion
- Research & Criticism
- Romance
- Sciences, Technology & Medicine
- Self Help & Inspiration
- Short Stories
- Translation
- Travel
- Merchandise
- Languages
- Blogs